ज़िंदगी को जियो.. खूब जियो ।।


ज़िंदगी को जियो.. खूब जियो ।।


जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है
मेरे घर से "स्कूल" तक का
वो रास्ता,
क्या क्या
नहीं था वहां,
चाट के ठेले, 
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,
अब वहां 
"मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी
सब सूना है..
शायद
अब दुनिया
सिमट रही है...
.
.
.
जब
मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं...
मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी
"साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो
हर शाम
थक के चूर हो जाना,
अब
शाम नहीं होती,
दिन ढलता है
और
सीधे रात हो जाती है.
शायद
वक्त सिमट रहा है..
जब
मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी
हुआ करती थी,
दिन भर
वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो
दोस्तों के
घर का खाना,
वो
लड़कियों की
बातें,
वो
साथ रोना...
अब भी
मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती 
जाने कहाँ है,
जब भी 
"traffic signal"
पर मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और
अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,
होली,
दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,
शायद
अब रिश्ते
बदल रहें हैं..
.ं
जब
मैं छोटा था, 
तब खेल भी
अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई,
लंगडी टांग, 
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
internet, office, 
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद
ज़िन्दगी
बदल रही है.
.
.
जिंदगी का
सबसे बड़ा सच
यही है.. 
जो अकसर क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है...
"मंजिल तो
यही थी, 
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल 
सिर्फ सपने में ही है..
अब
बच गए
इस पल में..
तमन्नाओं से भर
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
और
इस ज़िंदगी को जियो..
खूब जियो  ।।





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